गुरुवार 15 जून 2023 - 06:54
सूर ए बकरा: एक सवाल है, हकीकत है और इसे समझने का तरीका है

हौज़ा | अविश्वासी सत्य सुनने, सत्य कहने और सत्य देखने में असमर्थ हैं। मानव इंद्रियां पहचान और अनुभूति का साधन हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

तफसीर; इत्रे क़ुरआन: तफ़सीर सूर ए बकरा

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم    बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَمَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا كَمَثَلِ الَّذِي يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ إِلَّا دُعَاءً وَنِدَاءً ۚ صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُونَ   वामसालुल लज़ीना कफ़ारू कमसालिल लज़ी यनएक़ो बेमा ला यस्मओ इल्ला दुआ वा निदाआ सुम्मुन बुकमुन उमयुन फ़हुम ला याक़ेलून । (बकरा 171)

अनुवादः और काफ़िरों की मिसाल उस चरवाहे की है जो जानवर को बुलाने में उसके रेवड़ को (चिल्लाता है) सही पुकार पर सुनता नहीं। (ये काफ़िर) इतने बहरे, गूंगे और अंधे हैं कि ये अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते।

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣  काफ़िर की मिसाल उस जानवर की तरह है जो सुनने में अक्षम है।
2️⃣  नबियों के आह्वान से काफिरों को केवल चीखना और शोर ही समझ में आया।
3️⃣ अविश्वासी सत्य सुनने, सत्य बोलने और सत्य देखने में असमर्थ होते हैं।
4️⃣ मानवीय इंद्रियां पहचान और ज्ञान का साधन हैं।
5️⃣ प्रश्न, वास्तविकता और इसे समझने का तरीका।

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तफसीर राहनुमा, सूर ए बकरा

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